नमस्कार दोस्तों, आज हम इस लेख में बात करेंगे techniques of decision making। मनुष्य की सोचने की क्षमता ही अन्य जीवो से उच्च/ सर्वोच्च बनाती है हम इन बातों को कुछ कहानियों के माध्यम से समझेंगे जो जीवन के कुछ पक्षो में निर्णय लेने में निश्चित ही आपके लिए उपयोगी होंगे І
techniques of decision making
➠ एक बार एक पंडित जी एक छोटा सा सुंदर सा गाय का बछड़ा खरीद कर लेकर जा रहे थे, तीन-चार चोरों की नजर उस पर पड़ी उनका मन हुआ कि काश यह बछड़ा हमें मिल जाए सस्ता मिल जाए आधे दाम या उससे भी कम में मिल जाए, उन्होंने साजिश की और बारी बारी से पंडित जी से रास्ते में मिले। पहला एक व्यक्ति मिला गंभीर चेहरा बनाकर उसने कहा पंडित जी यह बकरी कितने में ली पंडित जी ने कहा यह तो बछड़ा है बकरी थोड़े हैं उसने हंसकर ,कहा यह बछड़ा है ये इतना कहकर मुस्कुराते हुए वहां से निकल गया पंडित जी को लगा अजीब गधा आदमी है यह है तो बछड़ा ही है , उसका उतना ही काम था किया और निकल गया। पंडित जी आगे चलते हैं करीब 100 200 मीटर चलने के बाद एक दूसरा आदमी मिला। ( इनके बीच में आपस में सांठगांठ है पंडित जी को नहीं पता है) दूसरा आदमी आया और बोला कितनी मोटी बकरी है एकदम बछड़ा लग रही है देखने में तो, पंडित जी ने ध्यान से देख कर कहा कि मैं तो बछड़ा ही लाया हूं उसने बोला वही तो मैं भी कह रहा हूं देखने में एकदम बछड़ा लग रहा है लेकिन है मोटी बकरी, यह कहकर वह भी निकल गया।
1 किलोमीटर बाद फिर तीसरा मिला उसने कहा पंडित जी मुझे बस एकदम ऐसे ही बकरी चाहिए कहां मिलेगी मुझे ऐसी बकरी ,फिर पंडित जी ने धमकाते हुए कहा नहीं भाई यह तो बछड़ा है लेकिन पंडित जी दबाव बना रहे थे लेकिन दबाव में ज्यादा थे वह आदमी भी ठहाका मार के हंसने लगा यह बछड़ा है ऐसा होता है अच्छा यह कह चला गया और फिर चौथा आदमी जो असली मास्टरमाइंड था उस साजिश का वह आया पैसे गिनते हुए और कहा अरे अरे अरे पंडित जी ने स्वयं से कहा मुझसे बड़ी गलती हो गई है मैं तो बकरी खरीद लाया बछड़े के नाम पे और उनको लगा घर जाऊंगा घर में भी पिटूँगा इससे अच्छा नुकसान कम कर लेता हूं अनुमान लगाइए उस जमाने में, पंडित जी ने कहा 100 रुपए का लिया है उस चौथे आदमी ने कहा ₹100 का बकरी तो ₹20 के आसपास आ जाती है लेकिन यह इतनी तंदुरुस्त है है तो मैं आपको ₹40 इसके दे सकता हूं और पंडित जी को लगा चलो ₹60 का नुकसान सही कम से कम 80 का तो नहीं हुआ ₹40 का दिए और खुश होकर चल दिए घर की ओर कि बच गए आज तो।
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इस कहानी का बताने का मतलब है कि जब हम जीवन में निर्णय करते हैं तो हमारे पास बहुत सारे उटपटांग इनपुट आते हैं और आप बहुत समझदार इंसान नहीं है तो इस बात का पूरा खतरा है की कोई ना कोई कभी ना कभी आपको बेवकूफ बना ही देगा और हम जिस दौर में हैं व्हाट्सएप इंवर्सिटी के दौर पे हैं सारा ज्ञान ही वहां से आता है सोशल मीडिया मैसेज और वीडियो और हर वीडियो में कुछ ना कुछ मैसेज कन्वे हो रहा है इंफॉर्मेशन इतनी ज्यादा कभी नहीं आई हमारे आसपास जितनी आजकल आ रही है वह भी ऑडियो विजुअल फॉर्मेट में आ रही है अखबारों के दौर में लिखित सूचना आती थी केवल साक्षर लोग ही पढ़ते थे बाकी पढ़ते ही नहीं थे आज के दौर में ऑडियो है विजुअल है टेक्स्ट है हर भाषा में हैकोई व्यक्ति बच ही नहीं सकता है और किसी समूह के पास ताकत हो उसके पास10000 ऐसे बेरोजगार हो जिनको काम दिया जाए कि दिन में 500 मैसेज है हर मैसेज के बदले दो दो रुपए मिलेंगे तो कोई समूह, समाज को अपने तरीके से सोचने पर मजबूर कर सकता है

➡ महाभारत का सोच कर देखिए महाभारत का युद्ध है एक तरफ पांडव है और एक तरफ कौरव है पांडवों के साथ श्रीकृष्ण है नैतिकता के लिए जरूरी है पांडव युद्ध जीते और श्री कृष्ण पूरी योजना के साथ वहां पर है लेकिन पांडव नहीं जीत पर रहे क्योंकि जिसके कई कारणों में से एक कारण है कि गौरव की सेना में गुरु द्रोणाचार्य भी है उनके पुत्र अश्वत्थामा भी युद्ध में है, द्रोणाचार्य गुरु पांडवों के भी हैं और कौरव के भी है राजधर्म का पालन कर रहे हैं क्योंकि वह राज्य राज्य के शासकों के साथ खड़े हैं पांडवों की सेना उनको हरा नहीं पा रही है और अंत में श्रीकृष्ण को समझ में आता है कि पांडवों को जिताने के लिए कुछ कूटनीति का सहारा लेना पड़ेगा ।श्री कृष्ण कूटनीति के शिखर है वह युधिष्ठिर से एक बात कहते हैं लेकिन युधिष्ठिर तैयार नहीं है यह गलत/ झूठी बात कहने के लिए, और अंत में श्री कृष्ण अपनी पूरी कूटनीति का इस्तेमाल करते हैं किसी को संभालते है, एक हाथी अश्वत्थामा नाम का उसकी हत्या होती है बात चलाई जाती है की अश्वत्थामा मारा गया , अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र का भी नाम है और द्रोणाचार्य अचानक हताश हो जाते हैं उन्हें फिर भी लगता है कि मैं खबर को प्रमाणित करूं, खबर प्रमाणित है या नहीं एक बार चेक करूं, तो वह अपने समय के सबसे प्रमाणिक व्यक्ति युधिष्ठिर से पूछते हैं युधिष्ठिर धर्मराज है झूठ नहीं बोलते, पूरी पांडवों की सेना ने जब युधिष्ठिर कहा लेकिन वह तब भी तैयार नहीं हुए कि मैं झूठ नहीं बोलूंगा लेकिन अब अश्वत्थामा की हत्या हुई है हाथी की हुई है क्या हुआ हत्या तो हुई है तभी युधिष्ठिर चाह रहे हैं कि मैं पूरी बात बोल बोल दूं। द्रोणाचार्य ने पूछा, क्या अश्वत्थामा मारा गया। युधिष्ठिर कह रहे हैं अश्वत्थामा मारा गया आदमी था या हाथी था…. जैसे ही आदमी था या हाथी था कह रहे हैं कि उसी क्षण में बहुत तेज शंख बजता है श्री कृष्ण का और कुछ शंख की आवाज में द्रोणाचार्य सुन नहीं पाते हैं पूरी बात, क्योंकि वो सुनते है सिर्फ इतना की अश्वत्थामा मारा गया वह नष्ट हो जाते हैं हथियार छोड़ देते हैं युद्ध भूमि में जमीन से टिककर बैठ जाते हैं और इसी क्षण का फायदा उठाकर धृष्टद्युम्न उनकी हत्या कर देता है।
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मैं सोचता हूं कई बार की द्रोणाचार्य इतने योग व्यक्ति थे यदि मिस इंफॉर्मेशन से या मैनिपुलेटिंग इंफॉर्मेशन से उनको भी एक गलत तथ्य के प्रति आश्वस्त किया जा सकता है तो आज के दौर में जब हर तरफ सोशल मीडिया के हमले हैं कैसे कोई व्यक्ति सही फैसला करें अगर द्रोणाचार्य उस आवाज को सुन पाते की आदमी था या हाथी था तो शायद उनका फैसला बदल गया होता तो शायद युद्ध कहानी अलग होती है पर किस तरह तरह से सूचनाएं पहुंचे कौन सी सूचनाएं ठीक से न पहुंचा दी जाए ऐसे कॉन्टेक्स्ट से बाहर तो हटा दिया जाए ,अगर सूचना देने वाले इस में माहिर हो तो समाज क्या करें ?आम आदमी क्या करें? द्रोणाचार्य जैसा महान चिंतक क्या करें?
➽ फैसला करना हर दौर में मुश्किल था आजकल के दौर में सबसे मुश्किल है तो कुछ सावधानियां कि आप जब फैसला करें जिंदगी में तो किन सावधानियों को बरतें, ताकि गलतियां कम से कम गलतियां,उसके बाद भी होगी कौन है जो गलतियां नहीं करता ,फैसले में सब करते हैं आप भी करेंगे, पर गलतियां कम, सही फैसले ज्यादा हो । मेरे फेवरेट दार्शनिक है जीन पौल सार्त्र। फ्रेंच फिलॉस्फर है उनके दर्शन का सहार अस्तित्ववाद कहते हैं एग्जिटस्टेलिस्म कहते हैं का कार्य है कि अपनी जिंदगी की कहानी हम लोग खुद लिखते हैं और किसी चीज से लिखते हैं अपने फैसले से लिखते हैं निर्णय से लिखते हैं आपने किसी परिस्थिति में क्या फैसला लिया से आपके जीवन की आगे की कहानी लिखी जाएगी इसलिए मुझे लगता है कि यह टॉपिक थोड़ा सा महत्व तो इसका नाम लेते हैं निर्णय सही निर्णय लेने में क्या क्या सावधानियां होनी चाहिए बेसिक सी बात इतनी सी।
निर्णय लेने की प्रक्रिया
जब भी कोई निर्णय लेने की प्रक्रिया में आप उतरते हैं सबसे पहला स्टेप क्या? से पहले स्टेट है कि यह देखिए कि निर्णय की प्रक्रिया में उतरने से पहले आपनिष्पक्ष और तटस्थ है या नहीं है एक शब्द होता है तटस्थ इसको अंग्रेजी में बोलते हैं न्यूट्रल तटस्थथा को नुट्रिलिटी बोलते हैं इससे मिलता-जुलताएक प्रसंग है निष्पक्ष या निष्पक्षता कह लीजिए इसको बोलते हैं इंपार्शियल होना या इंपार्शियलिटी एज इक्वलिटी।
मैं यह कह रहा हूं निर्णय की प्रक्रिया में उतरने से पहले बाद में जो होगा देखेंगे, जैसा हमारा समाज इस समय बहुत सारे सामाजिक राजनीतिक मुद्दों से गिरा हुआ जैसे एक होता कुछ दिन पहले आया जो हिजाब का मुद्दा, कर्नाटक से एक डिबेट उठी हिजाब की फिर एक मुद्दा आजकल चल रहा है यूनिफॉर्म सिविल कोड जो कि हो सकता है वह जल्दी ही किसी रूप में हमारे सामने आए,
फिर पापुलेशन बिल के बारे में बात चलती है आजकल उत्तर प्रदेश में आया भी था और अभी कुछ और राज्यों में आने की बात है शायद सेंट्रल में भी आए एक मुद्दा तो पिछले कुछ दिनों से कन्वर्जन का आप सुन रहे होंगे धर्मांतरण का लव जिहाद का मुद्दा सुन रहे होंगे सारे मुद्दे हमारे सामने आते रहते हैं
किसी टॉपिक पर बात करने से पहले यह देखना जरूरी है कि हम पहले से पैसे वाले तो नहीं पहले से हम फैसला ले नहीं चुके हैं और सबसे बड़ी दिक्कत हमारे समाज की यह है कि फैसला पहले हो चुके हैं विचार बाद में होता है सही प्रोसेस तो यह है कि पहले विचार हूं फिर फैसला हो पर फैसला पहले होता मेरे बहुत सारे दोस्त हैं हिंदू हैं मुसलमान हैं ठीक है हर धर्म के लोग वैसे तो मैं बहुत ही अकेले टाइप कर दोस्त ज्यादा है नहीं पर जो है उनमें डायवर्सिटी ठीक-ठाक है मेने क्लास में भी देखा और मैंने पाया कि हिजाब की बात आती है कोई मुस्लिम बच्चा जर्नली इस भाव से देखता है कि नहीं यह गलत हो रहा है हमारे साथ और कहीं हिंदू बच्चे इस भाव से देखते हैं कि एकदम सही और होना चाहिए और होना चाहिए और मजे की बात है कि टॉपिक क्या है ना इसको पता है ना उसको पता कर्नाटक हाई कोर्ट का जजमेंट क्या 128 पेज का ना ,इसने पढ़ाना उसने पढ़ा |
कर्नाटक सरकार का क्या डायरेक्शन आया था रूल क्या था ना इसने पढ़ाना उसने पढ़ा और फैसले का एग्जैक्ट मतलब क्या है किसी को नहीं पता पर हम टॉपिक शुरू होने से पहले ही राय बना कर चलते हैं
इ एच कार , बहुत अच्छे विद्वान हुए हिस्ट्री में उनकी एक बड़ी अच्छी किताब है इतिहास क्या है व्हाट इज हिस्ट्री बहुत अच्छी किताब है उन्होंने साबित किया है कि हिस्ट्री के बारे में आप कुछ भी कह लीजिए कितने फैक्स हैं कितने प्रमाण हैं बेकार की बातें अंततः इतिहासकार के दिमाग में जो बैठा हुआ वह साबित वही करता है इसलिए मार्क्सिस्ट, हिस्टोरियन लिखेंगे तो आप पाएंगे सबके निर्णय एक जैसे आते है और जो नेशनलिस्ट हिस्टोरियन है उनके फैसले एक जैसे आते हैं हमेशा किसी हिस्टोरिकल फिगर का ले लीजिए आप किसी हिस्टोरिकल फिगर को लेकर सोच लीजिए अकबर की बात कर लीजिए औरंगजेब की बात कर लीजिए एक धारा के फैसले एक से आएंगे दूसरी धारा के फैसले हमेशा एक से आएंगे ऐसी माइंडसेट से अगर हम चलेंगे
हमारी यूनिवर्सिटीज में भी तो यही होता है बहुत रोचक बातें की यूनिवर्सिटी में टीचर बैठे हुए हैं कि यह मार्क्सवादी है यह भाजपाई है और उसका और मैं सोचता हूं कि जो आदमी देश को पढ़ाने की जिम्मेदारी संभालता है यूनिवर्सिटी में, वह एक विचारधारा से बंद कर चीजों को देखने का आदि कैसे हो सकता है? उसके अंदर इतना वैचारिक साहस क्यों नहीं है कि किसी मुद्दे पर मेरी विचारधारा से बेहतर रहा है किसी और विचारधारा की भी हो सकती है यह साहस क्यों नहीं है और इसलिए जो बात यूनिवर्सिटी तक मैं मिस होती है वह समाज में कहां से आएगी? विश्वविद्यालय का तो काम है समाज को सही दिशा देना वही नहीं है तो समाज में कहां से आएगी पहले कोशिश कीजिए न्यूट्रल होने की तटस्थ होने की कि मुद्दे को समझने से पहले मैं न इस तरफ हूं ना मैं उस तरफ हूं हिजाब की बात है मुझे नहीं पता मैं पहले स्टडी करूंगा पूरा स्टडी करने के बाद मामला ठीक लगेगा तो मैं कहूंगा हां यह ठीक है गलत होगा तो बोलूंगा पहले क्यों फैसला करूं पहले क्यों फैसला करूं? यह तो बहुत बेसिक सी बात है न्यूट्री लिटी हिजाब रियल सिचुएशन में आती है तो उसको बोलते हैं निष्पक्षता
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ध्यान रखना है निष्पक्ष नहीं रहे पाने के भी 2 तरीके होते हैं निष्पक्ष का मतलब है कि भाई मैं एक्स और वाई के झगड़े में ना x की तरफ ना y की तरफ हूं जैसे मानिए दो बच्चों में झगड़ा हो जाए और उस उनमें से दोनों को मम्मी या नीचे आ जाए जनरल परसेप्शन यह है कि मम्मी बच्चों के झगड़े में अपने बच्चे का पक्ष लेगी यह ऐसा नहीं है कि सोशल कंस्ट्रक्ट की बात हो रही है बायोलॉजी के लेवल पर बात चल रही है क्योंकि मदर्स कलम आमतौर पर अनकंडीशनल माना जाता है और यह बात जो मैं कह रहा हूं अब हवाओं के बेस पर नहीं कह रहा हु
एरिक फ्रॉम बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक हैं उनकी किताब है द आर्ट ऑफ लिविंग उसके बेस पर कह रहा हूं मदद का लाभ अंतर पर अनकंडीशनल होता है कि मेरा बच्चा परेशान है तो फिर मैं अपने बच्चे के साथ हूं मुझे विचारधाराओं से राष्ट्र समाज राजनीति इन सब से मतलब नहीं मुझे बस अपने बच्चे से मतलब है इसलिए अगर कोई मदद बहुत ऑब्जेक्टिव है अपने बच्चे के मामले में तो यह बहुत बड़ी बात है जनरल इस बात की संभावना ज्यादा है कि वह उस के पक्ष में थोड़ी सी खड़ी होगी पिता लोग जिस प्रोसेस से आगे बढ़ते हैं उसमें इस बात का खतरा ज्यादा होता है या संभावना ज्यादा होती है कि वह बहुत ज्यादा अपने बच्चे के पक्ष में झुके हुए ना दिखे
कभी-कभी नहीं भी होंगे लेकिन उसमें भी एक खतरा है कभी-कभी हम खुद को इंपार्शियल दिखाने के लिए दूसरे पक्ष में झुक जाते हैं आपने कई पिताओं को देखा होगा कि 2 बच्चों में झगड़ा हुआ उनमें से एक उनका है जाते हुए अपने वाले को मारना शुरू करते हैं सीधा, कि तूने बदमाशी की होगी दे दना दन…. दिखाने के लिए देखो मैं कितना निष्पक्ष हूं। यह निष्पक्षता नहीं है
निष्पक्ष होने का मतलब यह नहीं है कि अपने पक्ष के विरुद्ध खड़े ही हो जाना है हमेशा और निष्पक्ष होने का मतलब यह भी नहीं कि दूसरे पक्ष के विरोध में खड़े हो जाना है, जाकर सुनना है दोनों बच्चों की बात सुननी है कि हां बेटा तुम बताओ क्या पर्सपेक्टिव है तुम बताओ क्या पर्सपेक्टिव है उसके बाद जो सही फैसला हो वह कर ले, क्यों मैं दूसरों को बच्चे के सामने साबित करने के लिए मैं निष्पक्ष हूं अपने बच्चे को पीटना शुरू कर दूंगा?
तो यह पहला एस्टेट है कि आप जब किसी प्रक्रिया में उतरे हैं तो पहले कोशिश कीजिए कि राय पहले से ना बने हो क्योंकि फैसला पहले कर लिया फिर तो बेकारी की बात है ना फैसला पहले की हिजाब तो होना ही चाहिए फिर अपने विचार करना शुरू किया जाए और आप सुन रहे हैं सुन सुन के वह तक जिससे वही साबित हो जाए जो पहले आपके अपने में साबित हो चुका है फिर काहे का विचार विमर्श करना ! यह पहला स्टेप है
अब आगे बढ़ते हैं अब नंबर तो शुरू यहां से तो जब हम हमें शुरुआत का प्रोसेस समझ में आया आक्रोशित यह है कि जब हम जजमेंट की तरह पड़ेंगे तो हमें क्या क्या जानना है उस मुद्दे पर फैसला करने से पहले तो सेकंड स्टेप आपका इनपुट है उसका कलेक्शन कैसे होना चाहिए इनपुट का मतलब वह सारी जानकारी है जिनके बेस पर आप फैसले करेंगे आपकी भाषा में वह लड़का कैसा है वह लड़की कैसी है उसके बारे में 10 जानकारियां जुटा लेनी है पहले तो जो इनपुट आप लेंगे पहली बात तो वे पर्याप्त होना चाहिए।नहीं तो क्या होगा अश्वत्थामा हाथों यह बात कर लिया ही नहीं अगर उसके बाद सभी सुन लिया होता तो शायद वैसा ना होता तो हड़बड़ी में फैसला नहीं करना है पहले इनपुट पर्याप्त लेना हैI
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एक नियम होता है नेचुरल जस्टिस का, हमारे सुप्रीम कोर्ट ने मेनका गांधी केस बहुत दिमाग किए हैं 1978 का आर्टिकल 21 के बारे में उसमें एक बड़ी अच्छी बात कही आप में से अधिकांश लोग यूपीएससी की तैयारी भी करते हैं आप जानते होंगे कि 1973 में संविधान के मूल ढांचे का कांसेप्ट आया था 24 अप्रैल को केशवानंद भारती केस में उसके बाद से सुप्रीम कोर्ट ने बीच-बीच में यह बताना शुरू किया की यह चीज भी संविधान के मूल ढांचा है मेनका गांधी केस में जिक्र करते हुए बताएं कि जो आर्टिकल 14 है संविधान का जो कहता है कि समानता का अधिकार है उसमें लिखा भले ना हो पर उसके अंदर निहित है पर ,सुनवाई का अधिकार या रियली प्रेजेंटेशन इसका मतलब कोई भी अदालत कोई भी कमीशन कोई भी अथॉरिटी वह पासपोर्ट अथॉरिटी के बारे में था पासपोर्ट ऑफिसर के बारे में था कोई भी सरकारी अधिकारी किसी व्यक्ति का पक्ष सुने बिना यानी दूसरा पक्ष सुने बिना कोई फैसला नहीं कर सकता है यह जरूरी है और यह संविधान का मूल ढांचा है सरकार का कोई भी अधिकारी आपके खिलाफ कोई फैसला बिना आपको सुनवाई का मौका दिए कर ही नहीं सकता है हां सुनवाई का मौका दें और आप कहे कि मुझे कुछ कहना ही नहीं है तो कर सकता है पर आप को चांस मिलना चाहिए अगर आपने एक पक्ष को सुना और दूसरे पक्ष को सुना ही नहीं
कई बार क्या होता है की चीजें इतनी अलग होती हैं एकदम अलग हो जाती हैं जैसे मुझे ध्यान है एक बच्चे की कहानी, एक फादर और उसके बच्चे की कहानी, एक बच्चा मुझे एक बार मिला , हमारे ही एक उसके परिवार का बच्चा, मैं उसका हालचाल पूछा लाइफ में क्या चल रहा है , तो फिर दूसरी बात की मैंने उससे पूछा बताओ बेटा सब कैसा चल रहा है जीवन में तो फिर बताया उसने सब बात करते करते अचानक मुझे फील हुआ वह अपने पिता को लेकर बहुत नाराज है, तो मैंने कहा कि क्या हुआ बोलो बोला देखो. …. मेरी स्कूल में ट्रिप जा रही है सारे बच्चे जा रहे हैं मैं नहीं जा रहा पापा ने मना कर दिया मैंने कहा यार पापा ने क्यों मना किया? क्या हो गया ज्यादा खर्चा भी नहीं था पापा भी इनकम देखते हुए खर्चा भी ऐसा नहीं था कि ना कर पा रहे हो वह इतने गुस्से में था बोला मुझे लगता है कि नाली से उठाकर लाए थे क्योंकि सारे बच्चे जा रहे हैं एक मैं ही |
अच्छा बच्चे बहुत जल्दी फैसला करते हैं कि वह नाली के पास से आए हैं और नाली ही पता नहीं क्यों सुनते हैं सड़क के पास से बोल दे नाली चुनते हैं सब बच्चे की नाली के पास से लाए थे या तो अपना हुलिया देखते होंगे शीशे में इसको देखकर ज्यादा क्लोज लगता होगा कि नाली के पास से आए हैं तो मैंने कहा यार मुझे भी ठीक नहीं लग रहा है अच्छा मुझसे कोई व्यक्ति पूछेगी बच्चों का कोई जा रहा है स्कूल का,अपने बच्चे को भेजूं या ना भेजूं बेटियां में लोग तैयार रहते हैं बेटी को लेकर ज्यादा सोचते हैं मेरी सलाह हमेशा होती है कि जरूर भेजो क्योंकि परिवार में आप सिखा ही नहीं पाएंगे जो टिप्पर सीखने को मौका मिलेगा तो मैंने उसके पिता से जो वंही थे आसपास, अलग से बात की कि मैंने यार यार बड़ा नाराज है तेरा छोरा कह रहा है कि पापा भेज नहीं रहे ट्रिप पे अब सोचिए मैं उसके पिता से मिला मेरे मन में या अभाव था कि यह ऐसी मूर्खता क्यों कर रहा है क्यों नहीं भेज रहा उसे और उसके बाप ने साइड में ले जाकर क्या बोला मुझे भोलासर दिक्कत क्या डॉक्टर ने मना किया है जिसके हार्ट में प्रॉब्लम है डॉक्टर ने कहा है कि भूल कर भी बाहर नहीं भेजना है और यह भी कहा है कि इसको पता भी नहीं चलना चाहिए कि प्रॉब्लम क्या है अगर इसको बता दिया इस उम्र में कि हार्ट में दिक्कत है तो जिंदगी खत्म भेज दिया तो वैसे खत्म तो क्या करें अब देखिए कि दूसरा पक्ष सुनते ही क्या हुआ पर्सपेक्टिव पूरा चेंज हो गया आप तो गुस्से में थे कि कैसा बाप है अब बच्चा मुझसे पूछ रहा है बच्चे को लगा था कि मैं उसको अप्रोच लगाने गया हूं सिफारिश करने गया हूं वह मुझसे पूछ रहा है कि बात कर लिया आपने अब मैं ऐसा क्या बोलूं कई बार ऐसा होता है कि आपने एक पक्ष को सुना आपको लगा कितना ऑथेंटिक है पर्याप्त हैं फैसला कर लो लेकिन दूसरा पच इतना ड्रा मेडिकली अलग होता है इतना जरूरी होता है कि वह सुनने के बाद आपको लगता है कि यह तो बिना सुने फैसला हो ही नहीं सकता था इसलिए कोई पक्ष कितना भी कन्विंसिंग हो पूरा परिवार पूरा धर्म पूरा समाज पूरी राजनीति सब एक तरह बोल रहे हो तब भी ध्यान रखना है कि एक दूसरा पक्ष भी होता है जब तक के सिक्के का दूसरा पहलू नहीं देखेंगे आप सच के नजदीक नहीं पहुंच पाएंगे हमेशा देखिए कोई इंफॉर्मेशन आई है नियत का सवाल भी हो सकता है न |
इस लेख को पढ़कर आपको कुछ बातें समझ में आई होंगी, अब इसी मुद्दों से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाब पर चर्चा करते है
सवाल :- जब ज्यादा सजेशन होती है, तो फिर उस स्थिति में क्या करना चाहिए| बेसिकली अगर मैं किसी सिचुएशन में हूं, और मेरे पास ज्यादा सजेशन आ रहे हैं इनपुट आ रहे हैं, तो मेरा डिसीजन रिलेटेड प्रोसेस क्या होना चाहिए? क्योंकि अगर मैं ऑब्जेक्टिविटी की बात करता हूं, या तो सभी या फिर कुछ नहीं या तो ब्लैक या फिर वाइट ,लेकिन वहां मेरे पास बेसिकली सही रहता है कितने लिमिटेड ही रहेगा और इसी में ही मुझे करना है बट मेरे पास ज्यादा स्पेस आ रहा है, ज्यादा सजेशन आ रही है, तो इस केस में मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर :- देखिए अगर इनपुट ज्यादा जगह से आ रहे हैं तो सबसे पहले आपके दिमाग में यह भी बताता होगा कि कौन सा एयरपोर्ट देने वाला व्यक्ति या चैनल या प्लेटफार्म कितना सटीक है, तो सबसे पहले अपने आसपास से उन व्यक्तियों और चैनल्स को थोड़ा दूर कीजिए, जो बहुत ठोस बात करने से दूर रहते हैं ऐसे होंगे आपके आसपास मैं भी देखता हूं हम सबके दिमाग में एक फिल्टर लगा होता है जैसे हंसी मजाक की बात अगर कहूं जैसे जो स्टाफ में कुछ लोग हैं कुछ की आदत होती है चीजों को बढ़ाकर कहने की कुछ की होती है कम करने की कहने की तो कुछ इंटरेक्शन के बाद हमारे दिमाग में एक फिल्टर लगा होता है जैसे हंसी मजाक की बात अगर कहूं जैसे जो स्टॉप में कुछ लोग हैं उसकी आदत होती है चीजों को बढ़ाकर कहने की कुछ की होती है कम करने की कहने की तो कुछ इंस्ट्रक्शन के बाद हमारे दिमाग में एक फिल्टर काम करने लगता है जैसे कोई आकर मुझसे बोले कि बहुत अर्जेंसी है मेरे पास कोई मैसेज जैसे किसी का है कि बहुत अर्जेंट बात करनी है दो-तीन इंसिडेंट हो चुके हैं तो मुझे पता है कि इसकी अर्जेंसी भी ऐसी है कि चार-पांच दिन तक कोई दिक्कत नहीं है और कुछ लोग ऐसे होंगे लिखेंगे की बात करने की जरूरत है समय हो तो बताइएगा और मुझे पता है कि यह बोल नहीं रहा है पर बहुत अर्जेंट बात है इसलिए इसने ऐसा लिखा होगा तो जिनके साथ आप संवाद में हैं धीरे-धीरे समझिए उनके व्यक्तित्व को कि कौन कितना वोट है ठीक है कितना गहरा है कैसा व्यक्ति है और ऐसे मामले में हमेशा ऐसे व्यक्ति को फिर प्रेफरेंस दीजिए जो गहरी और समझदारी की बात करना जानते हैं और ज्यादा इनपुट होने से कंफ्यूजन बढ़ता है यह बात सही है लेकिन विकल्प जब ज्यादा होते हैं तो संभावना होती है कि आप सही विकल्प तक और अच्छे से पहुंच पाएंगे कन्फ्यूजन होगा इसलिए विकल कम कर दे वह ठीक बात नहीं है ना निर्णय की प्रक्रिया बेहतर बने वह बेहतर बात है। ..
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम डिसीजन पहले से भी ले चुके होते हैं, पर फिर भी हम एक सजेशन के लिए जाते हैं
तो उस केस में ऐसा कभी कभी नहीं होता आमतौर पर होता है आमतौर पर फैसला पहले चुप हो चुका होता है फिर हम सजेशन के लिए क्यों जाते हैं इसकी 2 वजह हैं ,एक तो सेल्फ डिफेंस मेकैनिज्म होता है, आप दूसरों को दिखाना चाह रहे हैं कि देखो मैं सब की बात सुनने के बाद फैसला करता हूं जबकि फैसला आप कर चुके हैं एक तो इसलिए कि आप सबके सामने कह सकें देखो मैंने कितना सोचकर फैसला लिया है मैंने तो इनसे भी राय ली उनसे भी राय ली एक तो मन में यह भाव रहता है कभी-कभी आपने फैसला किया पर आपको इसका हल्का सा खुद भी डाउट है सेल्फ डाउट है कि फैसला गलत तो नहीं हो गया, कि शायद कोई गलती हो गई तो हम सुधार ले कभी-कभी इसलिए हम एक्स्ट्रा सजेशन सीक करते है| दूसरी बात है तो बढ़िया है पहली बात है तो केवल इसलिए है कि आप सबको जस्टिफाई कर सकें कि देखो मैंने तो पूछा था इतनी बात है